आईपीएस अफसरों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे CISF के 332 अधिकारी, प्रमोशन को लेकर है विवाद............


भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कॉडर अधिकारियों के बीच विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सीआरपीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के बाद अब सीआईएसएफ के अधिकारियों ने भी 'आर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस', गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) और गैर-कार्यात्मक चयन ग्रेड (एनएफएसयू) जैसे मामलों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली है।अदालत में दी याचिका में सीआईएसएफ के 332 अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने आर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस को लेकर जो दिशा-निर्देश जारी किए थे, उनका पालन नहीं हो रहा है। डीआईजी या आईजी के जिन पदों पर कॉडर अधिकारियों को तैनात करने की बात कही गई थी, वहां नियमों के खिलाफ कथित तौर पर आईपीएस अफसरों को नियुक्ति दी जा रही है। पिछले माह आईटीबीपी में भी ऐसा ही मामला देखने को मिला था।ऑर्गेनाइज्ड सर्विस कैडर से जुड़े मामले में 18 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीबीपी में कॉडर रिव्यू होने के बाद नए सृजित किए गए आईजी के पचास फीसदी पदों को डेपुटेशन के जरिए भरने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि अगले आदेश तक आईटीबीपी में एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड पर कोई भी नियुक्ति डेपुटेशन से नहीं की जानी चाहिए।आईपीएस अफसरों के लिए तय डीआईजी के कई पद तो डेढ़ साल से खाली पड़े हैं, जिन्हें अब डेपुटेशन से भरने का प्रयास हो रहा है। कॉडर अधिकारियों के अनुसार इन पदों पर कोटे के तहत बल के अधिकारियों को नियुक्त किया जाए, लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है। इसका ताजा उदाहरण आईटीबीपी में भी देखने को मिला है। गृह मंत्रालय ने पिछले महीने यूपी कॉडर के आईपीएस अधिकारी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद में ज्वाइंट डायरेक्टर रह चुके राजीव सभरवाल को डेपुटेशन पर आईटीबीपी में आईजी बनाने के आदेश जारी कर दिए गए।अगले ही दिन यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह तो सीधे तौर पर अवमानना का केस बनता है। इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी कह दिया कि जब तक इस नियुक्ति को वापस नहीं लिया जाता, तब तक अग्रिम सुनवाई नहीं करेंगे। गृह मंत्रालय ने तुरंत गलतफहमी का हवाला देकर आईजी की नियुक्ति के आदेश वापस ले लिए।




50 फीसदी पदों पर डेपुटेशन से नियुक्ति पर रोक


बता दें कि पिछले माह 23 अक्तूबर को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में आईटीबीपी के कॉडर रिव्यू को अंतिम रूप दिया गया था। इस बैठक के बाद उसी दिन शाम को बल में नए पदों के सृजन का आदेश जारी कर दिया गया। कॉडर रिव्यू के तहत आईटीबीपी में एडीशनल डीजी के दो, आईजी के दस, डीआईजी के दस, कमांडेंट के 13, टू-आईसी के 16 और डिप्टी कमांडेंट के नौ पदों के सृजन को मंजूरी दे दी गई।इनके अलावा नॉन जीडी कॉडर में भी आईजी के दो पदों को स्वीकृति मिली। कॉडर अफसरों के मुताबिक ऑर्गेनाइज्ड सर्विस कैडर की मौजूदा पॉलिसी के सभी नियमों के तहत नए सर्विस रूल्स बनाकर बल का कॉडर रिव्यू होना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।नतीजा, बल के कुछ अधिकारी दोबारा से हाईकोर्ट पहुंच गए। सोमवार को हाईकोर्ट में जस्टिस एस.मुरलीधर और तलवंत सिंह की डिवीजन बेंच ने आईजी के पचास फीसदी नए सृजित पदों को डेपुटेशन के जरिए भरने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक आईटीबीपी में एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड पर कोई भी नियुक्ति डेपुटेशन से नहीं की जानी चाहिए।


अदालत को गुमराह करने का प्रयास


केंद्रीय सुरक्षा बलों के कॉडर अफसरों का आरोप है कि आईपीएस लॉबी के दबाव में आकर गृह मंत्रालय ने डेपुटेशन से आईपीएस राजीव सभरवाल को आईटीबीपी में आईजी लगाया था। इस मामले में अदालत के स्थगन आदेशों को भी दरकिनार कर दिया गया। कॉडर अफसरों का कहना है कि डेपुटेशन पर आईजी की नियुक्ति बताती है कि गृह मंत्रालय के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों ने अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया है।जब अदालत ने इस मामले में स्टे देकर साफतौर से यह कह दिया था कि आईजी के पचास फीसदी नए सृजित पदों पर डेपुटेशन के जरिए कोई भी नियुक्ति नहीं होगी, तो इसके बावजूद आईजी की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए गए।मामला फिर से हाईकोर्ट की उसी बेंच के पास पहुंच गया। इस बार संबंधित अधिकारियों को अदालत की फटकार लगी। सरकार की ओर से कहा गया कि इस मामले में गलतफहमी हुई है। गृह मंत्रालय में डायरेक्टर अनंत किशोर सरन (पुलिस) ने 20 नवंबर को एक अन्य आदेश जारी किया। इसमें आईजी राजीव सभरवाल की आईटीबीपी में बतौर आईजी की गई नियुक्ति को रद्द कर दिया गया।मंत्रालय की ओर से इस नियुक्ति को रद्द करने के पीछे प्रशासनिक कारणों का हवाला दिया गया। इसी तरह अब सीआईएसएफ में नियुक्तियां करने का कथित प्रयास हो रहा है।

कॉडर और आईपीएस अफसरों के बीच क्यों है विवाद?


पिछले पांच-छह वर्षों से केंद्रीय सुरक्षा बलों के कॉडर अफसरों और आईपीएस अधिकारियों के बीच अपने हितों को लेकर विवाद चल रहा है। यह विवाद पहले हाईकोर्ट पहुंचा था और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट। दोनों ही जगह पर कॉडर अफसरों के हित में फैसला सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में कॉडर अफसरों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को ग्रुप-ए की संगठित सेवाओं का दर्जा देकर वहां तत्काल प्रभाव से एनएफएफयू (नॉन फंक्शनल फाइनेंसियल अपग्रेडेशन) लागू किया जाए।सभी बलों के कॉडर अधिकारियों को संगठित सेवा कॉडर का हिस्सा बनाकर नए नियमों के तहत इन्हें सर्विस के सभी फायदे दिए जाएं। यानी एक तय समय सीमा के बाद इन अधिकारियों को अगला रैंक (किसी वजह से जैसे सीट खाली नहीं है या कोई दूसरी दिक्कत है) नहीं मिलता है, तो उस रैंक के सभी वित्तीय फायदे संबंधित अधिकारी को दें। इसके खिलाफ आईपीएस एसोसिएशन भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई।बल के अधिकारियों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने कथित तौर पर आईपीएस एसोसिएशन का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का हल करने के लिए एक कमेटी गठित करने की बात कह दी। इसके लिए 30 नवंबर तक का समय ले लिया गया। अब कहा जा रहा है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 31 मार्च तक का समय लेने के लिए आवेदन दे दिया है।